मोह मोह के बंधन है,इसे दर्पण
नही कहते
दिल में जो अपनापन है,उसे अनबन
नही कहते
तुम जो आज रूठे रूठे से लगते हो
अब हमसे
ये तो प्यार है दिल का इसे अनबन
नही कहते
बादल घने है अब ये आसमानो में
लेकिन
समय से अगर ना बरसे उसे सावन
नही कहते
खिलखिलाहट चेहरे में उनके सदा
बनी रहती
पलभर में जो मुरझा जाये उसे यौवन
नही कहते
फूलो की खुश्बू वो आती गुलशन
में महक
वीरानी फ़ैली हो अगर उसे उपवन
नही कहते
उलझनों में घिरा हुआ,मुश्किलो में
फंसा हुआ
जो कभी साथ ना दे उसे अपनापन
नही कहते
तपकर आग में यूँ जब भी निकाला जाता
है सोना।
दर्द के बदले आकिब"निखार आये उसे
तड़पन नही कहते।।
-आकिब जावेद
0 टिप्पणियाँ
Thanks For Visit My Blog.